Thursday, December 9, 2010

आंसू

आँख से टपका हुआ , इक़ बे रंग कतरा ,
तेरे दामन की पनाह पाता ,तो आंसू होता!
बात बात पे जो बहता रहा , वो पानी था ,
बिना ही बात जो आता , तो आंसू होता !
वस्ल में जागती आँखें ,पथरा गयी होतीं ,
पलक झपकते ही आता ,तो आंसू होता !
नींदों में ख़लल होता , जो मेरे ख्यालों का ,
आँख में ठहर ना पाता , तो आंसू होता !
आह ठंडी लिए खुलतीं , जो सुर्ख आँखें ,
होंठ भी फर्कने से आता , तो आंसू होता !
दर्द हो जाता दफ़न , बस हंसी ठहाकों में ,
'कुरालीया ' समझ ना पाता तो आंसू होता !

Wednesday, December 8, 2010

मेरा महबूब


सूक्षम का शिखर ,
नजाकत की लहर ,
कयामत का कहर ,
मेरा महबूब !

सूरज का मीत ,
सितारे सा शीत ,
रौशनी की जीत ,
मेरा महबूब !

सागर का नीर ,
धरती का धीर ,
पातळ का आखीर ,
मेरा महबूब !

चन्दन की महक ,
कोयल की चहक ,
हिरन की सहक ,
मेरा महबूब !
हीरे की चमक ,
नूर की दमक ,
अम्बर की धमक ,
मेरा महबूब !


कली की झलक ,
परी की पल्क ,
इशकी सबक ,
मेरा महबूब !

फकीरी मलाल ,
रब्बी ख़याल ,
गहरा स्वाल ,
मेरा महबूब !




कोई नज़म ,
जाने बज़म
मेरी कलम ,
मेरा महबूब !




वक़्त की आह ,
कुदरत की राह ,
फरिश्ते की चाह,
मेरा महबूब !




प्यारे दोस्त "संत वरदान को " सप्रेम भेंट




Monday, August 16, 2010

"जज्बा "एक गीत वतन के नाम






वतन से प्यार का ज़ज्बा , हर दिल में जगा दे !
वो शमा भगत सिंह वाली , रग रग में जला दे !

ना हों ज़ात के झगडे , ना धर्मों के हों बंटवारे ,
ऐ मालिक सभी का , बस एक ही रिश्ता बना दे !

भाषाओं से ना हो , पहचान किसी आदम की ,
एक भाषा प्यार की , जन जन को सिखा दे !

अपने अपने काम को , समझें सभी पूजा ,
रिशवत का दाग , हर एक चेहरे स हटा दे !

ना लाशों से बने ,सरहदें कहीं मुल्कों की ,
अमनों चेन से रहना , हर मन को सिखा दे !

शहीदों की सोगात ,आज़ादी सस्ती नहीं मिली ,
डर है की नई पीढ़ी , इसे यूँ ही ना गँवा दे !

आज़ाद माँ के सपूत ,नशों में गर्क हो रहे हैं ,
अँधेरा में घिर चुके जो , उन्हें रौशनी दिखा दे !

वत्तन की खातिर , ख़ुशी से जान भी दे दें ,
आन सलामत रहे वतन की ,एहसास दिलादे !

नारी मेरे वतन की, सीता भी है, झांसी भी ,
बस बेगानी सभ्यता से , थोडा सा बचा दे !

चाँद को छूने वाला दिल, क्या नहीं कर सकता,
मेरे हर भारत वासी को , नित नया हौसला दे !

हम हैं हिन्दुस्तानी , हमारी शान हिन्दुस्तान ,
हमारी आन है तिरंगा ,हर जान को सिखा दे

'कुरालीया ' क़र्ज़ ,इस धरती का चुकाना लाजिम है ,

बची हर सांस अपनी ,बस राह में वतन की लगा दे !


वतन से प्यार का ज़ज्बा, हर दिल में जगा दे !
वो शमा भगत सिंह वाली , रग रग में जला दे !

Friday, August 13, 2010

"जज्बा "एक गीत वतन के नाम


वतन से प्यार का ज़ज्बा , हर दिल में जगा दे !
वो शमा भगत सिंह वाली , रग रग में जला दे !

ना हों ज़ात के झगडे , ना धर्मों के हों बंटवारे ,
ऐ मालिक सभी का , बस एक ही रिश्ता बना दे !

भाषाओं से ना हो , पहचान किसी आदम की ,
एक भाषा प्यार की , जन जन को सिखा दे !

अपने अपने काम को , समझें सभी पूजा ,
रिशवत का दाग , हर एक चेहरे स हटा दे !

ना लाशों से बने ,सरहदें कहीं मुल्कों की ,
अमनों चेन से रहना , हर मन को सिखा दे !

शहीदों की सोगात ,आज़ादी सस्ती नहीं मिली ,
डर है की नई पीढ़ी , इसे यूँ ही ना गँवा दे !

आज़ाद माँ के सपूत ,नशों में गर्क हो रहे हैं ,
अँधेरा में घिर चुके जो , उन्हें रौशनी दिखा दे !

वत्तन की खातिर , ख़ुशी से जान भी दे दें ,
आन सलामत रहे वतन की ,एहसास दिलादे !

नारी मेरे वतन की, सीता भी है, झांसी भी ,
बस बेगानी सभ्यता से , थोडा सा बचा दे !

चाँद को छूने वाला दिल, क्या नहीं कर सकता,
मेरे हर भारत वासी को , नित नया हौसला दे !

हम हैं हिन्दुस्तानी , हमारी शान हिन्दुस्तान ,
हमारी आन है तिरंगा ,हर जान को सिखा दे

'कुरालीया ' क़र्ज़ ,इस धरती का चुकाना लाजिम है ,
बची हर सांस अपनी ,बस राह में वतन की लगा दे !


वतन से प्यार का ज़ज्बा, हर दिल में जगा दे !
वो शमा भगत सिंह वाली , रग रग में जला दे !

Wednesday, July 21, 2010

Sunday, March 21, 2010

चोट


चोट ताज़ा है अभी , थोडा मुस्कुराने दो !
वकत लगेगा अभी ,दर्दे दिल सुनाने को !

गुमा नहीं था, इस कदर चोट खायेंगे ,
ठगे से रह गए , बस तिलमिलाने को !

लम्हें चुनने दो , ख्यालों के खंज़र से ,
लुटे हैं कितने , हिसाब तो लगाने दो !

जितने चाहो , किस्से बुनते रहना ,
सच आँखों में , सिमट तो जाने दो !

जो हुआ , सरे महफ़िल तो हुआ है ,
जो जेसा सुनाता है , बस सुनाने दो !

"कुरालीया " सब सच बयां कर देगा ,
सब्र करो , साँसें ठहर तो जाने दो !




Saturday, February 27, 2010

होली मुबारक









सभी ब्लोगर दोस्तों को होली की शुभकामनाएं !

लेकिन जरा सुरक्षा से मनाएं !



श्रीमती निर्मला कपिला से रु-ब-रु






















श्रीमती निर्मला कपिला से रु-ब-रु

आनंद भवन क्लब नया नंगल के सभागार में २० फरवरी की शाम को एक साहित्यक समारोह का आयोजनअक्खर चेतना मंच नंगल द्वारा साहित्य कला प्रचार एवं प्रसार मंच नंगल के सहयोग से किया गया । इस समारोहका मुख्य मनोरथ नंगल की नामवर लेखिका श्रीमती निर्मला कपिला जी को साहित्य प्रेमियो एवं बुद्धिजीविओं के रु-ब-रु करवाना था । समारोह के मुख्य अतिथि पंजाबी पत्रिका प्रीत लड़ी की संपादिका बीबी पूनम सिंह एवं संचालक रत्तिकांत सिंह जी थे । प्रमुख व्यवसायी श्री राकेश नय्यर जी कि सरपरस्ती में चलने वाले इस समारोह में निर्मला कपिला जी ने अपने साहित्यक जीवन के अब तक के अनुभव श्रोताओं के समक्ष रखे । गौर तलब है कि निर्मला कपिला जी को जिले की प्रथम ब्लॉग लेखिका होने का सम्मान प्राप्त है । महिला ब्लोगरों की कई संस्थाओं द्वारा उन्हें परुस्कृत भी किया जा चूका है । उनकी रचनाये इन्टरनेट पर वीर बहूटी.ब्लागस्पाट.कॉम पर पढ़ी जासकती हैं ।
अक्खर चेतना मंच के सरपरस्त राकेश नय्यर , प्रधान देविंदर शर्मा , उप-प्रधान संजीव कुरालिया , सचिव राकेश वर्मा द्वारा श्रीमती निर्मला कपिला , बीबी पूनम सिंह , श्री रत्तिकांत सिंह को सम्मान- चिन्ह एवं शाल भेंट किये गये । मुख्य -अतिथि महोदया ने अपने वक्तव्य में निर्मला कपिला के लेखन पर सारगर्भित टिप्पणी की एवं उनकेब्लॉग लेखन कार्य की भरपूर सराहना करते हुए उन्हें बधाई दी । उन्होंने मंच के प्रयासों की सराहना करने केसाथ-साथ प्रीत लड़ी के मौजूदा स्वरुप के बारे में भी श्रोताओं को अवगत करवाया । समारोह में नंगल के नामवरएवं देश विदेश में प्रसिद्ध ग़ज़ल-गायक श्री सुनील सिंह डोगरा ने अपनी मधुर आवाज़ का जादू बिखेरते हुए खूब समा बांधा । उन्होंने जहाँ श्रीमती कपिला की लिखी ग़ज़लों को स्वयम स्वरबद्ध करते हुए गायन किया वहाँ अपनी सुरीली आवाज़ में शिव कुमार बटालवी की रचनाये सुना कर भी खूब तालियाँ बटोरीं ।
इसी समारोह में एक छोटी सी कवि गोष्ठी का आयोजन भी किया गया । इसमें आनंद पुर साहिब से विशेष रूप से पधारीं ग़ज़ल लेखिका अनु बाला {किरना दा झुरमुट }, युवा शायर अमरजीत 'बेदाग़' , प्रो। योगेश चन्द्र सूद , अशोक राही , अम्बिका दत्त (मेहतपुर), एस डी शर्मा सहोड़ , सरदार बलबीर सिंह सैनी , ने अपनी कविताएं सुनाई ।श्री संजीव कुरालिया जी ने अपनी ताज़ा तरीन ग़ज़ल तरन्नुम में गाकर सभागार में उपस्थित श्रोताओं को अपने सम्मोहन में क़ैद कर लिया । मंच संचालन की जिम्मेवारी राकेश वर्मा ने निभाई ।

देर शाम करीब सवा नौ बजे तक चले इस समारोह में प्रमुख रंगकर्मी फुलवंत सिंह मनोचा ब्रिज मोहन ठेकेदार , देवराम धामी के इलावा , गुलज़ार सिंह कंग , रघुवंश मल्होत्रा , श्रीमती एवं श्री दर्शन कुमार , संजय सनन , डॉ।संजीव गौतम आर के कश्यप, श्री एम् एम् कपिला रविंदर शर्मा , ईशर सिंह चूचरा , भोला नाथ कश्यपसमाज-धर्म ), सुभाष शर्मा भी उपस्थित थे ।
अंत में अक्खर चेतना मंच के प्रधान देविंदर शर्मा एवं अन्य ने डॉ गौतम, सुनील डोगरा, एवं ब्रिज मोहन को सम्मान चिन्ह एवं शाल भेंट किये । देविंदर शर्मा जी ने अपने धन्यवाद भाषण में ये विश्वास दिलाया कि अकखर चेतना मंच ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन कर भविष्य में भी साहित्य के प्रचार एवं प्रसार में अपना योगदान देता रहेगा ।
----- संजीव कुरालीया
( उप प्रधान )
अकखर चेतना मंच

Wednesday, February 17, 2010

सूचना !

सभी ब्लोग्गर दोस्तो को ये जान कर अत्यंत हर्ष होगा कि
अक्खर चेतना मंच नया नंगल

आगामी २० फ़रवरी को शाम ६ बजे आनंद भवन क्लब नया नंगल के सभागार में एक साहित्यक समारोह का आयोजन करने जा रहा है ॥
इस कार्यक्रम में आप सब की जानी पहचानी ब्लोग्गर

श्रीमती निर्मला कपिला जी
को साहित्य -प्रेमियो के
रु--रु
करवाया जाएगा ...

उनकी लिखी चन्द गजलों का गायन विख्यात ग़ज़ल गायक
श्री सुनील डोगरा जी

अपनी मधुर आवाज़ में करेंगे ....
आप सभी सादर आमंत्रित हैं ...
----- संजीव कुरालीया
उप प्रधान
अक्खर चेतना मंच
नया नंगल

Tuesday, February 16, 2010

ग़ज़ल


दिल को , दस्तक देता रहता ,
धुन्दला ,धुन्दला एक फ़साना !

ख्वावों में है , एक ही मंज़र ,
उसका आना , उसका जाना !

हंसता गुल ,समझाए सबको ,
सच है , कल मेरा मुरझाना !

राह बदल लेता है , अक्सर ,
सीधा चला , कब ये ज़माना !

फूल खिला तो , लाश मिली ,
मुबारक , भंवरे का मर जाना !

कैसे रुके दिल, जब रोना चाहे,
यादें तो हैं, बस फ़कत बहाना !

"कुरालीया " दिल दरिया जैसा ,
डूबना लाजिम , सबने माना !

Sunday, February 14, 2010

मेरा महबूब !


सूक्षम का शिखर ,
नजाकत की लहर ,
कयामत का कहर ,
मेरा महबूब !

सूरज का मीत ,
सितारे सा शीत ,
रौशनी की जीत ,
मेरा महबूब !

सागर का नीर ,
धरती का धीर ,
पातळ का आखीर ,
मेरा महबूब !

चन्दन की महक ,
कोयल की चहक ,
हिरन की सहक ,
मेरा महबूब !
हीरे की चमक ,
नूर की दमक ,
अम्बर की धमक ,
मेरा महबूब !


कली की झलक ,
परी की पल्क ,
इशकी सबक ,
मेरा महबूब !

फकीरी मलाल ,
रब्बी ख़याल ,
गहरा स्वाल ,
मेरा महबूब !




कोई नज़म ,
जाने बज़म
मेरी कलम ,
मेरा महबूब !




वक़्त की आह ,
कुदरत की राह ,
फरिश्ते की चाह,
मेरा महबूब !




प्यारे दोस्त "संत वरदान को " सप्रेम भेंट




Saturday, February 13, 2010

चिड़िया


प्यार महोब्बत चिड़िया ऐसी,
जिसके सर पे दो दो चोंच !

अपना अपना करने वाले ,
मिलते ही मौका लेते नोंच !

आह : तो भरते तेरे दर्द की ,
होता अपनी कमर पे हाथ !

प्यार से आंसू पोछने वाले ,
पीठ के पीछे मारें लात !

भावनाओं का दाना खा खा ,
ये चिड़िया फल फूल रही है ,

बोली बदल सभी से बोले ,
हर दिल के अनुकूल रही है !

प्यार महोब्बत की ये चिड़िया,
कब किसको ,क्यूँ लेती नोंच ,

लाश बनादे, कब कोनसा रिश्ता ,
मिलती भी नहीं है कोई खरोंच !

इस चिड़िया के खाए लाखों ,
तस्वीरों में जड़े हुए हैं .

बुत्त बने हैं कितनों के ही ,
चोराहों में खड़े हुए हैं !

प्यार महोब्बत की ये चिड़िया,
हर मुख से गुणगान कराये ,

हर जिव्हा पे नाम इसी का ,
इसको नींद कभी ना आये ,

ना जाने किस पल डस ले ,
कब किस पे अमृत बरसाए !

दुनियां का हर इक रिश्ता ,
मानों जीभ में रहता लिपटा,

विष अमृत का खेल ये दुनियां ,
आदम आदम से है लिपटा !

कितनी ही चलती फिरती लाशें ,
इस धरती पे रेंग रही हैं ,

विष अमृत की बे रंग फुहारें ,
इक दूजे पे फेंक रही हैं !

झूठ कपट से भरी पोटली ,
हर धड के सर पे धरी है ,

ये चिड़िया खा गयी करोड़ों ,
फिर भी दुनियां हरी भरी है !

Monday, February 8, 2010

ग़ज़ल


पहले नहीं हम लुटने वाले ,आँखों के बाज़ार में !
जाने कितने टकरायें अभी , शीशे की दीवार में !

ख़त पढ़ते ही रो देंगे वो ,ऐसा तो गुमां ना था ,
तौबा कितना दम होता है , कागज़ की कटार में !

निसार उनपे क्या किया ,शायद कुछ हिसाब लगे ,
पाना तो होता ही नहीं , दिल के अंधे व्योपार में !

दर्दे बयां भी कर देंगे , कुछ बज़्मे रौनक बढ़ने दो ,
आखिर हंसी उड़ायें क्यूँ , हम अपनी दो चार में !

मेरा बुलाना , तेरा जाना , दोनों बातें तय हैं अब ,
"कुरालीया "वकत गंवाए क्यूँ , वादों की तकरार में !

Sunday, January 31, 2010

स्यासी इश्तिहार


स्यासी इश्तिहार ओढ़ने की ,
नाकाम कोशिश करता हुआ ,
नींद के नशे मे चूर ,
इश्तिहार को खींचता हुआ,
कि फट न जाये कहीं ,
खुद को थोडा समेटता हुआ ,
उलझे बाल, अर्ध नगन सा,
सूखा जिस्म,मिटटी सा रंग ,
पेट मे घुटने दबाये ,
एक बच्चा सो रहा था ......!

कभी पांव ढकता , कभी सर छुपाता,
गरीबी का ये भूखा तांडव ,सड़क किनारे हो रहा था
काश ये पढ़ना जानता ,इश्तिहार पे लिखा नारा ,
जिसपे लिखा था ...मैं हूँ गरीबों का सहारा ,
अब ना कोई सोयेगा भूखा,ये है हमारा पक्का वादा ,
हमें आपकी जरूरत है ,
बस अपना एक एक कीमती वोट ,
हमारी झोली मे डालो ,
हम तुम्हें खुशहाल बना देंगे ,



बच्चे को क्या मालूम, कि वो कितना बड़ा झूठ ,
बदन से लपेट रहा हा ,कभी ना मिटेगी भूख ,
जिस वो बदन से लपेट रहा है ,

क़ल इसे सुबह कोई ,ठोकर से उठा देगा ,
बिना संबोधन ,आधी नींद से जगा देगा ,
ये बच्चा फिर चल देगा, इस तलाश में ,
कि शायद कहीं फिर, कोई नेता आएगा ,
इश्तिहार लगाने का काम ,मिल जायेगा ,

ये बच्चा फिर टूटी फूटी दीवारों पे,
अपनी भूख चिपकायेगा ,
लेवी से लथ पथ हाथ लिए ,
फिर किसी सड़क के किनारे ,
बचे कुचे इश्तिहारों के विछोने पे ,
अर्ध नगन सा सो जायेगा ,

शायद कभी ना समझ पायेगा ,
ये बच्चा ,यूँ ही अध् खिला बचपन लिए,
सड़क किनारे ही बड़ा हो जायेगा ,
बिजली के खम्बे की तरह ,
कभी जलेगा ,कभी बुझेगा ,
मिटटी में मिटटी होता हुआ ,
आखिर मिटटी हो जायेगा !

शायद कभी ना समझ पायेगा ,
इन सयासी इश्तिहारों पे लिखे,
चमचमाते झूठ का मतलब ,



"कुरालीया "लाखों सवाल लिए ,
मन में उठते बवाल लिए ,
इश्तिहारों के इस मेले में ,
कब तक यूँ ही चिल्लाएगा ,
कभी ना ख़तम होने वाला ,
लम्बा सवाल ..........शायद ,
कभी हल ना कर पायेगा !

जो आज पढ़ा था ,कल मिलेगा नहीं ,
कल कोई और ,नया इश्तिहार ,
चिपकाया जायेगा ......... !



Saturday, January 30, 2010

चंद शेयर

ज़िकर दर्द का मैं ,कैसे कर दूँ !
जान , लफ्ज़ों के हवाले कर दूँ !

मैं कोई पीर ,पैगम्बर तो नहीं ,
जो सर काट , हथेली पे धर दूँ !

ह़क नमक का, अदा करते हैं ,
कैसे अश्कों मे, मिश्री भर दूँ !

जा पहुँचे ,जो तेरे ख्यालों तक ,
बता याद को , कोन से पर दूँ !

Tuesday, January 26, 2010

जय हिंद

सभी देश वासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं तथा सभी ब्लॉगर दोस्तों को जय हिंद !

Sunday, January 24, 2010

ज़ज्बा ..एक गीत वतन के नाम

वतन से प्यार का ज़ज्बा , हर दिल में जगा दे !
वो शमा भगत सिंह वाली , रग रग में जला दे !

ना हों ज़ात के झगडे , ना धर्मों के हों बंटवारे ,
ऐ मालिक सभी का , बस एक ही रिश्ता बना दे !

भाषाओं से ना हो , पहचान किसी आदम की ,
एक भाषा प्यार की , जन जन को सिखा दे !

अपने अपने काम को , समझें सभी पूजा ,
रिशवत का दाग , हर एक चेहरे स हटा दे !

ना लाशों से बने ,सरहदें कहीं मुल्कों की ,
अमनों चेन से रहना , हर मन को सिखा दे !

शहीदों की सोगात ,आज़ादी सस्ती नहीं मिली ,
डर है की नई पीढ़ी , इसे यूँ ही ना गँवा दे !

आज़ाद माँ के सपूत ,नशों में गर्क हो रहे हैं ,
अँधेरा में घिर चुके जो , उन्हें रौशनी दिखा दे !

वत्तन की खातिर , ख़ुशी से जान भी दे दें ,
आन सलामत रहे वतन की ,एहसास दिलादे !

नारी मेरे वतन की, सीता भी है, झांसी भी ,
बस बेगानी सभ्यता से , थोडा सा बचा दे !

चाँद को छूने वाला दिल, क्या नहीं कर सकता,
मेरे हर भारत वासी को , नित नया हौसला दे !

हम हैं हिन्दुस्तानी , हमारी शान हिन्दुस्तान ,
हमारी आन है तिरंगा ,हर जान को सिखा दे

'कुरालीया ' क़र्ज़ ,इस धरती का चुकाना लाजिम है ,
बची हर सांस अपनी ,बस राह में वतन की लगा दे !


वतन से प्यार का ज़ज्बा, हर दिल में जगा दे !
वो शमा भगत सिंह वाली , रग रग में जला दे !

Tuesday, January 19, 2010

ग़ज़ल




ये इश्क का अजगर ,निगल गया लाखों ,
मगर , कमी न आयी , कहीं दीवानों मे !

बिन जले समझा है ,न कोई समझेगा ,
कैसा जनून है , मरने का परवानो मे !

अजब ये आग है ठंडी, धुआं नहीं करती ,
मज़ा आता है बस , जलने जलाने मे !

बीमारे इशक को, दरवेश कहूं या दीवाना ,
शिवरी को उम्र लगी , बेर खिलाने मे !

कहीं 'शिव' को लगाता है, रोग विरहा का ,
सयाही दर्द की, भरता है कलमदानों मे !


कच्चे घड़े की , कश्ती पे तेरता है कहीं,
दफ़न होता है कहीं , रेत के तूफानों मे !

'कुरालीया' बस, इतना ही समझ पाया ,
मिटता रहा है , महबूब को मनाने मे !

Monday, January 18, 2010

ग़ज़ल


हर हालात को , पुख्ता हल की ज़रुरत है !
फ़ेसला तय है , क्या कल की ज़रुरत है !

तंगिए दौर , पुर जोर बुलंदी पे है इब्ला ,
आवाम को , बस हलचल की ज़रुरत है !

इल्म भरपूर है सबको, अमल से परहेज़,
मशरूफ नज़रों को ,फुर्सत की ज़रुरत है !
दीवानगी आज भी , कम नहीं है लैला की ,
जो पहुँचे दिल तक ,उस कद की ज़रुरत है !

रहवर खुद भटके हुए , रास्ता बता रहे हैं ,
जो रौशनी बक्शे , मुर्शद की ज़रुरत है !

हर फेसला कल पे , क्यूँ टाला जा रहा ?
'कुरालीया ' किस कल की ज़रुरत है !

Friday, January 15, 2010

ग़ज़ल


शायद कोई, दोस्त मिल जाये कहीं ,
रकीबों से भी, हाथ मिलाने लगा हूँ !

गुलों की चाल से , वाकिफ हूँ अब ,
गुलदानों में , कांटे सजाने लगा हूँ !

हर सवाल पे ,खामोश मुस्कुराता हूँ !
ढंग दुनियां का , आजमाने लगा हूँ !

दिल के धोखे , मैं अब नहीं खाता ,
हर एक चोट पे , गुनगुनाने लगा हूँ !

फरेब आखिर , सिखा दिया मुझको ,
अश्कों को , तिनका बताने लगा हूँ !









Sunday, January 10, 2010

समाज


समाज क्या बोले आज !
समय और आज का राज !

रिवाजों की रिवायतों में,
दफ़न होता आज का संवाद !
समाज क्या बोले आज !

दुल्हन की आँखों में आंसू ,
बाबुल से विछ्ड़ने के हैं कारण ,
या कोइ और है राज !
समाज क्या बोले आज !

हर उम्र खा रही अशलीलता ,
किस को, किस से आये लाज !
समाज क्या बोले आज !

सिकुड़ रही सभ्यता पर ,
जिसको बहुत है नाज ,
समाज क्या बोले आज !



Saturday, January 9, 2010

आंसू


आँख से टपका हुआ , इक़ बे रंग कतरा ,
तेरे दामन की पनाह पाता ,तो आंसू होता

बात बात पे जो बहता रहा , वो पानी था ,
बिना ही बात जो आता , तो आंसू होता !

वस्ल में जागती आँखें ,पथरा गयी होतीं ,
पलक झपकते ही आता ,तो आंसू होता !

नींदों में ख़लल होता , जो मेरे ख्यालों का ,
आँख में ठहर ना पाता , तो आंसू होता !

आह ठंडी लिए खुलतीं , जो सुर्ख आँखें ,
होंठ भी फर्कने से आता , तो आंसू होता !

दर्द हो जाता दफ़न , बस हंसी ठहाकों में ,
'कुरालीया ' समझ ना पाता तो आंसू होता !

Saturday, January 2, 2010

नवज़ात


एक नवज़ात की ज़ात क्या है ?
धर्म क्या है , औकात क्या है !

रोना ,सोना , विछौना भिगोना ,
छाती से दो बूँद ,दूध दोहना ,
माँ से बड़ा ,जज़्बात क्या है
एक नवज़ात की जात क्या है !


ना भेद ,ना भाव ,ना द्वेष ,ना दाव
नरम ,नाज़ुक ,निरोल ,बे दाग
वो क्या जाने , हालात क्या है !
एक नवज़ात की जात क्या है !


ना छल, ना बल ,ना कोइ दल ,
भाषा ,आशा ,ना कोई निराशा ,
ना जाने शय क्या ,मात क्या है!
एक नवजात की जात क्या है !

ना दर , ना जर ,ना कोई घर ,
न तर्क ,ना अर्थ , ना कोई फर्क ,
दिन है क्या, और रात क्या है !

एक नवजात की जात क्या है !
ना फायदा , ना कोई कायदा ,
ना वायदा , ना कम , ना जायदा ,
वो ना जाने , आघात क्या है !

एक नवजात की जात क्या है
ना शर्म ,ना मर्म ,ना कोई कर्म ,
ना स्वाद ,विवाद , ना कोई राज ,
पहल है क्या, और बाद क्या है !

एक नवजात की जात क्या है !
ना अर्ज़ ,ना मर्ज़ ,ना खुदगर्ज़ ,
ना फ़र्ज़ ,ना क़र्ज़ ,ना कोई गरज ,
वो ना जाने , सोगात क्या है

एक नवज़ात की जात क्या है ,
धर्म है क्या , औकात क्या है !






Friday, January 1, 2010

ग़ज़ल


ये बात झूठ है, कि सब झूठ है ज़माने में !
नहीं फरेब , किसी बच्चे के मुस्कुराने में !!

क्या कभी चाँद भी रूठता है , कहीं सूरज से,
फासला तय ही सही , दोनों के आने जाने में!

आराम खुद ही , सदा दिल को गुदगुदायेगा ,
लगा समय , किसी बजुर्ग के पांव दबाने में !

समझ पैगाम , महोब्बत का नाम है देना ,
फलों का मोल छिपा ,शाख के झुक जाने में !

'कुरालीया ' सब कुछ ,बिखर ना जाये कही ,
लगा ना देर किसी, रूठे को कभी मनाने में !