Tuesday, December 29, 2009

बेटी


बेटी को गले लगाते हुए ,
इक बाप भी , घबराने लगा है !

कौन है तेरा, रिश्ते में क्या है ,
बताते हुए , कुछ हकलाने लगा है !

सहमा हुआ सा , अब लोरी के बदले ,
अखब़ार की ख़बरें , सुनाने लगा है !

अब दिल की, तस्सली को गोया ,
लड़कों के कपडे ,पहनाने लगा है !

इक बेटी के बाप को ,हर चेहरा ,
अब ,दरिंदा नजर आने लगा है !

इस नए दौर , की तरक्की का ,
घिनोना रंग , नज़र आने लगा है !

द्रोपदी पुकार पे ,कृष्ण का आना ,
विश्वास कुछ , डगमगाने लगा है !

रोज , हवस का तांडव पढ़ कर ,
हर बाप , सजा सुनाने लगा है !

'कुरालीया '............ हर बेटी को अब ।
रानी झाँसी के ,किस्से सुनाने लगा है !

जिन्दगी










इस तरह शर्तों पे कैसे, कब तक कटेगी जिन्दगी !
गिर के यूँ कब तक , संभलती रहेगी जिन्दगी !

अपने अपने गरूर की, सीमा पे खड़े हुए हैं हम
बीच मैं गहरी है खाई , गिर कर रहेगी जिन्दगी

तनहाइयों के शोर में सिमटे हुए हर शख्स को ,
यूँ ठहाकों के कफ़न से ,कब तक ढकेगी जिन्दगी !

प्यार दे कर प्यार लेना , गर हुनर ये सीख लें ,
ना कोई बेगाना रहेगा ,ना बे मानी रहेगी जिन्दगी !

Sunday, December 27, 2009

क्यूँ ?


  1. आदमी हो, आदमी को, छलते कयूँ हो ?
    दूसरों के सर रख के पाँव चलते क्यूँ हो ?

    शोक ही शक्सियत का, ताज है आखिर ,
    बेगाने वज़ूद पे , नाहक जलते कयूँ हो ?

    आदतों पे हो के कुर्बां, आदम मसीहा बने ,
    सूरज से क्या सवाल, कि ढ़लते कयूँ हो ?

    आना जाना ही तो, हर शय का उसूल ,
    फिर आ के जाने से, भला डरते कयूँ हो ?

    सवाती बूँद कि खातिर , पपीहा मर रहे,
    हाथ खाली हैं तो क्या , मलते कयूँ हो ?

    गर दर्द दिल में , दफ़न कर सकते नहीं ,
    'कुरालिया' हर शय से , प्यार करते कयूँ हो ?

Friday, December 25, 2009

ग़ज़ल


रात इक ख़्वाब ने , फिर हमको जगाया रात भर !
सिसकियाँ बन के, तमाशाई ने हंसाया रात भर !!

दे गया ज़हन को , यूँ बिछड़ी हुयी यादों का भंवर ,
मैं ढूंढ़ता ही रह गया , ना लौट के आया रात भर !

ये तो तय है कोई, अपना ही था जगाने वाला ,
ना जाने कितनी ही ,शक्लों से मिलाया रात भर !


Wednesday, December 23, 2009

अपने प्यारे पिता....स्वर्गीय श्री संत राम जी को समर्पित



अपनी सूरत मैं तेरी, सूरत नज़र आती है !
आईना धुंधलाता है,आँख छलक आती है !


रात को पेट पे, लेटते हुए ही सो जाना,
कभी वो, पीठ की सवारी याद आती है !

हर बात मैं, बस रंग तेरा ही तलाशता हूँ
हर आदत मैं, तेरी आदत झलक जाती है !

तेरे होते, किसी दोस्त की कमीं ना थी,
दोस्ती हर दोस्त की, तंग नज़र आती है !

शाख से टूटे, किसी पत्ते को सहला लेता हूँ,
रूह जब भी ,तेरी याद में विल्विलाती है !

पलंग बजा कर , वो धीरे से गजल गाना ,
आवाज़ आज भी, कानों को छू जाती है !

खाली जेब से , भर कर मुट्ठी निकालना ,
आज इतनी है, दौलत, गिनीं ना जाती है !

सब्र से बढ़ कर, नहीं दौलत कोइ ज़माने मैं ,
आज भी बाद तेरे, ये बात काम आती है !

श्री 'संत 'के संग राम हो तो क्या कहना ,
हरेक सांस मैं, इक आह सी भर आती है !
'संजीव कुरालिया'



Tuesday, December 22, 2009

ग़ज़ल

फिर आई उसकी याद, कल रात चुपके-चुपके,
बहके मेरे जज़्बात, कल रात चुपके-चुपके..!!

दीवाना-वार हो के , हमने बहाए रात आंसू,
रोई ये कायनात, कल रात चुपके-चुपके !!

मेरी आँखें हुई पुर-नम, उनके दिए अश्कों से,
ये लाये वो सौगात, कल रात चुपके-चुपके !!

शह देते रहे हमको , वो दिखा के हुस्न का ज़लवा,
फिर खायी हमने मात, कल रात चुपके-चुपके !!

मेरी बे-बसी का मंज़र, नही देख पाया वो भी,
रोया था माहताब, कल रात चुपके-चुपके !!

रौशन थे जो बरसों से, तेरे वादे की लौ से 'वर्मा' ,
गुल गये चिराग, कल रात चुपके-चुपके !!


ग़ज़ल


कहीं न कहीं हर दिल मैं , कोई न कोई नासूर है !
कहीं न कहीं हर दिल वाला,गम खाया हुआ ज़रूर है
कहीं न कहीं है दरार कोई , सदिओं पुराने रिश्तों मैं ,
कहीं न कहीं हर रिश्ता, क्यूँ दिलों से कोसों दूर है !

कहीं न कहीं हर इन्सां, ओढ़े हुए है नकली हंसी,
कहीं न कहीं है दर्द कोई , कहता नहीं मजबूर है !

कहीं न कहीं है खौफ कोई, मस्त घूमती लाशों में ,
कहीं न कहीं अपने गम पे, 'कुरालिया' बड़ा ग़रूर है !

ग़ज़ल



मौला दर्द ज़माने भर का, ग़र मुझको मिल जाये तो ,
क्या बिगड़ेगा तेरा या रब, हर चेहरा खिल जाये तो !

लाशें खा खा थक गई होगी, ये धरती बहुत पुरानी है,
हर रिश्ते को जीने का, अंदाज़ नया मिल जाये तो !!

रंगों का बाज़ार ये दुनिया , न जाने क्यूँ वीरान लगे ,
बे रंग ख्यालों से आलम ,निजात जरा सी पाए तो !

न शाख से पत्ता बिछड़े , न आंधी तोड़े डाल कोई ,
मुरझाये हर गुल को , खोयी महक मिल जाये तो !

सदियों पुराने खेल घिनोने , ज़ात मज़हब दोहराए न,
दर्द बेगाना जाने ऐसा , दिल सबको मिल जाये तो !

दर्द दिलों में रहे न बाकी , न आँख कहीं नमी खाए ,
गम खा के हंसने वालों को, थोड़ी ज़ुबा मिल जाये तो !

बेबसी 'कुरालिया' बयाँ करे , क्यूँ सबका यूँ दर्द सहे ,
मौला तेरी रहमत सबको , इक जैसी मिल जाये तो!