Friday, December 25, 2009

ग़ज़ल


रात इक ख़्वाब ने , फिर हमको जगाया रात भर !
सिसकियाँ बन के, तमाशाई ने हंसाया रात भर !!

दे गया ज़हन को , यूँ बिछड़ी हुयी यादों का भंवर ,
मैं ढूंढ़ता ही रह गया , ना लौट के आया रात भर !

ये तो तय है कोई, अपना ही था जगाने वाला ,
ना जाने कितनी ही ,शक्लों से मिलाया रात भर !


2 comments:

AKHRAN DA VANZARA said...

"yeh to tai hai ki koi apna hi tha jagaane vala..."

wah... kya baat hai...!!!!

निर्मला कपिला said...

वाह वाह क्या बात है कुरालिया जी तभी तो आज जब आप्को देखा था तो सोये सोये से लग रहे थे। वैसे मुझे पता है कि रात की ड्यूटी पर बास ने ही जगाया होगा। हा हा हा। रचना बहुत अच्छी है। ढेरों आशीर्वाद ।