Tuesday, November 1, 2011

चोट ताज़ा है अभी



चोट ताज़ा है अभी , थोडा मुस्कुराने दो !
वकत लगेगा अभी ,दर्दे दिल सुनाने को !

गुमा नहीं था, इस कदर चोट खायेंगे ,
ठगे से रह गए , बस तिलमिलाने को !

लम्हें चुनने दो , ख्यालों के खंज़र से ,
लुटे हैं कितने , हिसाब तो लगाने दो !

जितने चाहो , किस्से बुनते रहना ,
सच आँखों में , सिमट तो जाने दो !

जो हुआ , सरे महफ़िल तो हुआ है ,
जो जेसा सुनाता है , बस सुनाने दो !

"कुरालीया " सब सच बयां कर देगा ,
सब्र करो , साँसें ठहर तो जाने दो !



Monday, March 7, 2011

अपने प्यारे पिता के नाम



अपनी सूरत मैं तेरी, सूरत नज़र आती है !
आईना धुंधलाता है,आँख छलक आती है !


रात को पेट पे, लेटते हुए ही सो जाना,
कभी वो, पीठ की सवारी याद आती है !

हर बात मैं, बस रंग तेरा ही तलाशता हूँ
हर आदत मैं, तेरी आदत झलक जाती है !

तेरे होते, किसी दोस्त की कमीं ना थी,
दोस्ती हर दोस्त की, तंग नज़र आती है !

शाख से टूटे, किसी पत्ते को सहला लेता हूँ,
रूह जब भी ,तेरी याद में विल्विलाती है !

पलंग बजा कर , वो धीरे से गजल गाना ,
आवाज़ आज भी, कानों को छू जाती है !

खाली जेब से , भर कर मुट्ठी निकालना ,
आज इतनी है, दौलत, गिनीं ना जाती है !

सब्र से बढ़ कर, नहीं दौलत कोइ ज़माने मैं ,
आज भी बाद तेरे, ये बात काम आती है !

श्री 'संत 'के संग राम हो तो क्या कहना ,
हरेक सांस मैं, इक आह सी भर आती है !
'संजीव कुरालिया'