Sunday, April 3, 2016

ग़ज़ल

ग़ज़ल

गर यूँ ही टकरायेंगे !

सब किस्सा हो जायेंगे !



जितनी बाँटेगे खुशिया ,

उतनी पाते जायेंगे !



यारों ये सच्चाई है

आए हैं वो जाएंगे !



जिन्दा रहने की खातिर ,

कब तक मरते जायेंगे !





अंधी नफरत की राहें ,

हम किस हद तक जायेंगे !





कब पहचानेगे खुद को ,

कब तक धोखा खायेंगे !





कहते मालिक सब का एक ,

कब दिल से अपनाएंगे !







Friday, April 1, 2016

कलम का कर्ज़

कलम का कर्ज़
               ग़ज़ल
रौशनी आग है आशिकों के लिए !
रात सोगात है दिलजलों के लिए !

वो सलामत रहें दिल दुखाएं सदा,
कर दुआ रोज तू दुश्मनों के लिए !

प्यार आदत हमारी नहीं छूटती,
हम बने ही नहीं दायरों के लिए !

दर्द सारे जहाँ का मुझे सोंप दो,
जान हाज़िर हमारी गमों के लिए !
                                  
नेमतें  है  सनम दे गया था हमे
गम जरूरी बना  धडकनों के लिए !

गम उठाने को हम हैं खड़े सामने ,   
हर ख़ुशी दे खुदा  दोस्तों के लिए !

अन कही बात भी जान जाएँ सभी ,
हो अलग इक जहाँ शायरों के लिए !

यार पैगाम कितने पड़े रह गये
था  पता भी जरूरी खतों के लिए !

कांपते कांपते मोन भी बोलता
शब्द मिलते नहीं जब लबों के लिए !

छोड़ संजीव उस बे वफा को भुला ,
आह इक छोड़ दे बादलों के लिए !

@ संजीव कुरालीआ

     01-14-2016