Sunday, April 3, 2016

ग़ज़ल

ग़ज़ल

गर यूँ ही टकरायेंगे !

सब किस्सा हो जायेंगे !



जितनी बाँटेगे खुशिया ,

उतनी पाते जायेंगे !



यारों ये सच्चाई है

आए हैं वो जाएंगे !



जिन्दा रहने की खातिर ,

कब तक मरते जायेंगे !





अंधी नफरत की राहें ,

हम किस हद तक जायेंगे !





कब पहचानेगे खुद को ,

कब तक धोखा खायेंगे !





कहते मालिक सब का एक ,

कब दिल से अपनाएंगे !







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