ग़ज़ल
गर यूँ ही टकरायेंगे !
सब किस्सा हो जायेंगे !
जितनी बाँटेगे खुशिया ,
उतनी पाते जायेंगे !
यारों ये सच्चाई है
आए हैं वो जाएंगे !
जिन्दा रहने की खातिर ,
कब तक मरते जायेंगे !
अंधी नफरत की राहें ,
हम किस हद तक जायेंगे !
कब पहचानेगे खुद को ,
कब तक धोखा खायेंगे !
कहते मालिक सब का एक ,
कब दिल से अपनाएंगे !