Tuesday, February 5, 2013

दिशा हीन


                दिशा हीन

भीड़ के संग चल पड़े, सब आबोदाना ढूँढ़ते !
अपने अपने हुनर से, जीनें का बहाना ढूँढ़ते !

दर्द की बस्ती है ये ,गम की दुकानें हैं सजी ,
राही भटकते फिर रहे,ख़ुशी का तराना ढूँढ़ते !

आज का सुख भूलकर,कल की चिंता में सभी ,

वक़्त अपना गँवा रहे ,गुज़रा ज़माना ढूँढ़ते !

मेले में तन्हा सभी ,बस भागते ही जा रहे

अपना अपना अलग अलग, आशियाना ढूँढ़ते !

“कुरालीया” हर शय की, फितरत  है घूमना ,

फिर रहे सब घूमते, अपना निशाना ढूंढते !