ज़िकर दर्द का मैं ,कैसे कर दूँ !
जान , लफ्ज़ों के हवाले कर दूँ !
मैं कोई पीर ,पैगम्बर तो नहीं ,
जो सर काट , हथेली पे धर दूँ !
ह़क नमक का, अदा करते हैं ,
कैसे अश्कों मे, मिश्री भर दूँ !
जा पहुँचे ,जो तेरे ख्यालों तक ,
बता याद को , कोन से पर दूँ !
4 comments:
बढिया; ये शेर है या शेयर ?
आरंभ
बहुत बढ़िया!
इश्तिहारों के इस मेले में ,
कब तक यूँ ही चिल्लाएगा ,
कभी ना ख़तम होने वाला ,
लम्बा सवाल ..........शायद ,
कभी हल ना कर पायेगा !ेक एक शब्द मर्मस्पर्शी भाव लिये हुये है सही मे हम लोग कभी इस राजनीति के खेल से उभर नही पायेंगे शुभकामनायें
ज़िकर दर्द का मैं ,कैसे कर दूँ !
जान , लफ्ज़ों के हवाले कर दूँ !
मैं कोई पीर ,पैगम्बर तो नहीं ,
जो सर काट , हथेली पे धर दूँ !
वाह लाजवाब शेर हैं शुभकामनायें
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