Monday, January 18, 2010

ग़ज़ल


हर हालात को , पुख्ता हल की ज़रुरत है !
फ़ेसला तय है , क्या कल की ज़रुरत है !

तंगिए दौर , पुर जोर बुलंदी पे है इब्ला ,
आवाम को , बस हलचल की ज़रुरत है !

इल्म भरपूर है सबको, अमल से परहेज़,
मशरूफ नज़रों को ,फुर्सत की ज़रुरत है !
दीवानगी आज भी , कम नहीं है लैला की ,
जो पहुँचे दिल तक ,उस कद की ज़रुरत है !

रहवर खुद भटके हुए , रास्ता बता रहे हैं ,
जो रौशनी बक्शे , मुर्शद की ज़रुरत है !

हर फेसला कल पे , क्यूँ टाला जा रहा ?
'कुरालीया ' किस कल की ज़रुरत है !

5 comments:

श्यामल सुमन said...

बहुत खूब संजीव जी। अच्छे भाव के साथ बेहतर रचना।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

sanjeev said...

har haalaat ko pukhta hal ki jarirat hai....

waah...waah...kya kahne ! ! !

aakhir kab tak intajaar karenge?
kal kyun aaj hi hal ki baat karein.

aapki kalam me jadu hai, is jadu ko karte rahiye.

दीपक 'मशाल' said...

Pata na tha Kuraliya sir itne siddhahast gazalkaar hain aap...
Jai Hind...

अजय कुमार said...

उम्दा गजल , बधाई

निर्मला कपिला said...

तंगिये दौर ---
इलम भरपूर --- बहुत सुन्दर पँक्तियां हैं । यूँ पूरी रचना ही लाजवाब हैाभार शुभकामनायें