ये बात झूठ है, कि सब झूठ है ज़माने में !
नहीं फरेब , किसी बच्चे के मुस्कुराने में !!
क्या कभी चाँद भी रूठता है , कहीं सूरज से,
फासला तय ही सही , दोनों के आने जाने में!
आराम खुद ही , सदा दिल को गुदगुदायेगा ,
लगा समय , किसी बजुर्ग के पांव दबाने में !
समझ पैगाम , महोब्बत का नाम है देना ,
फलों का मोल छिपा ,शाख के झुक जाने में !
'कुरालीया ' सब कुछ ,बिखर ना जाये कही ,
लगा ना देर किसी, रूठे को कभी मनाने में !
4 comments:
बढ़िया गजल है।बधाई।
बहुत बढ़िया गज़ल!!
लाल साहिब ....बहुत बहुत आभार मेरी रचनाओं को आपका निरंतर प्यार मिल रहा है जो मेरे लिए एक नयी उर्जा का श्रोत है ....आपको और आपकी कलम को बार बार नमन !
Post a Comment