Tuesday, December 22, 2009

ग़ज़ल

फिर आई उसकी याद, कल रात चुपके-चुपके,
बहके मेरे जज़्बात, कल रात चुपके-चुपके..!!

दीवाना-वार हो के , हमने बहाए रात आंसू,
रोई ये कायनात, कल रात चुपके-चुपके !!

मेरी आँखें हुई पुर-नम, उनके दिए अश्कों से,
ये लाये वो सौगात, कल रात चुपके-चुपके !!

शह देते रहे हमको , वो दिखा के हुस्न का ज़लवा,
फिर खायी हमने मात, कल रात चुपके-चुपके !!

मेरी बे-बसी का मंज़र, नही देख पाया वो भी,
रोया था माहताब, कल रात चुपके-चुपके !!

रौशन थे जो बरसों से, तेरे वादे की लौ से 'वर्मा' ,
गुल गये चिराग, कल रात चुपके-चुपके !!


1 comment:

निर्मला कपिला said...

दीवाना-वार हो के , हमने बहाए रात आंसू,
रोई ये कायनात, कल रात चुपके-चुपके !!

मेरी आँखें हुई पुर-नम, उनके दिए अश्कों से,
ये लाये वो सौगात, कल रात चुपके-चुपके !!
लाजवाब नज़्म है उपर की पाँक्तियाँ तो कमाल हैं बहुत बहुत बधाई|