आदमी हो, आदमी को, छलते कयूँ हो ?
दूसरों के सर रख के पाँव चलते क्यूँ हो ?
शोक ही शक्सियत का, ताज है आखिर ,
बेगाने वज़ूद पे , नाहक जलते कयूँ हो ?
आदतों पे हो के कुर्बां, आदम मसीहा बने ,
सूरज से क्या सवाल, कि ढ़लते कयूँ हो ?
आना जाना ही तो, हर शय का उसूल ,
फिर आ के जाने से, भला डरते कयूँ हो ?
सवाती बूँद कि खातिर , पपीहा मर रहे,
हाथ खाली हैं तो क्या , मलते कयूँ हो ?
गर दर्द दिल में , दफ़न कर सकते नहीं ,
'कुरालिया' हर शय से , प्यार करते कयूँ हो ?
10 comments:
सवाती बूँद कि खातिर , पपीहा मर रहे,
हाथ खाली हैं तो क्या , मलते कयूँ हो
वाह बहुत सुन्दर भाव हैं। आपका ब्लागबानी पर आने के लिये स्वागत है। बधाई
क्या बात है , लाजवाब लगी आपकी रचना । स्वागत है आपका
बहुत बढिया रचना .. इस क्यूं का जबाब किसी के पास नहीं .. सब अंधी दौड में भाग ले चुके हैं !!
आदतों पे हो के कुर्बां, आदम मसीहा बने ,
सूरज से क्या सवाल, कि ढ़लते कयूँ हो
सुभान अल्ला ..... सब के सब शेर लाजवाब ...... ज़मीनी हक़ीकत से जुड़े ...... लाजवाब ग़ज़ल है
बहुत सुन्दर ... भाव- अभिव्यक्ति ...
कोमल शब्दों का चयन ...
इस के लिए आपको साधुवाद !!!!
मैं आभारी हूँ ..श्री राकेश वर्मा जी का जिन की मदद स्वरूप मेरा ब्लॉग बन पाया तथा ब्लोग्वानी लिंक लगाने मैं भी वर्मा जी ने बहुत सहयोग दिया.... धन्यवाद वर्मा जी !
आप का अति आभारी हूँ कुरलिया जी
आपने इस नाचीज़ को अपने दिल के साथ साथ अपने ब्लॉग में भी जगह दी !!!!
हार्दिक धन्यवाद एवं ढेरों शुभकामनाएं
"Kyon" a very good collection.
"kyon" very heart touching
"Kyon" - Heart Touching
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