Tuesday, December 29, 2009

बेटी


बेटी को गले लगाते हुए ,
इक बाप भी , घबराने लगा है !

कौन है तेरा, रिश्ते में क्या है ,
बताते हुए , कुछ हकलाने लगा है !

सहमा हुआ सा , अब लोरी के बदले ,
अखब़ार की ख़बरें , सुनाने लगा है !

अब दिल की, तस्सली को गोया ,
लड़कों के कपडे ,पहनाने लगा है !

इक बेटी के बाप को ,हर चेहरा ,
अब ,दरिंदा नजर आने लगा है !

इस नए दौर , की तरक्की का ,
घिनोना रंग , नज़र आने लगा है !

द्रोपदी पुकार पे ,कृष्ण का आना ,
विश्वास कुछ , डगमगाने लगा है !

रोज , हवस का तांडव पढ़ कर ,
हर बाप , सजा सुनाने लगा है !

'कुरालीया '............ हर बेटी को अब ।
रानी झाँसी के ,किस्से सुनाने लगा है !

3 comments:

AKHRAN DA VANZARA said...

वाह ! क्या बात है !

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया...आज होते किस्से सुन सुन कर यही होना है.


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

निर्मला कपिला said...

कुरालिया जी बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति है। सही मे एक बेटी के बाप का यही सच है बधाई इस रचना के लिये ।