Monday, February 8, 2010

ग़ज़ल


पहले नहीं हम लुटने वाले ,आँखों के बाज़ार में !
जाने कितने टकरायें अभी , शीशे की दीवार में !

ख़त पढ़ते ही रो देंगे वो ,ऐसा तो गुमां ना था ,
तौबा कितना दम होता है , कागज़ की कटार में !

निसार उनपे क्या किया ,शायद कुछ हिसाब लगे ,
पाना तो होता ही नहीं , दिल के अंधे व्योपार में !

दर्दे बयां भी कर देंगे , कुछ बज़्मे रौनक बढ़ने दो ,
आखिर हंसी उड़ायें क्यूँ , हम अपनी दो चार में !

मेरा बुलाना , तेरा जाना , दोनों बातें तय हैं अब ,
"कुरालीया "वकत गंवाए क्यूँ , वादों की तकरार में !

8 comments:

Udan Tashtari said...

दर्दे बयां भी कर देंगे , कुछ बज़्मे रौनक बढ़ने दो ,
आखिर हंसी उड़ायें क्यूँ , हम अपनी दो चार में !

-बहुत खूब!!

M VERMA said...

तौबा कितना दम होता है , कागज़ की कटार में !
सुन्दर भाव की गज़ल

praneykelekh said...

too good

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गज़ल है।बधाई स्वीकारें।

मेरा बुलाना , तेरा जाना , दोनों बातें तय हैं अब ,
"कुरालीया "वकत गंवाए क्यूँ , वादों की तकरार में !

रानीविशाल said...

Waah!! bahut khub...Badhai!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

Yashwant Mehta "Yash" said...

पहला शेर ही काफ़ी है इस गज़ल का
......आपको पढना अच्छा लगा

वीनस केसरी said...

आपने बहुत ही अच्छी गजल कही है
आप ने जो लिखा उसका भाव मुझे बहुत अच्छा लगा

आपका स्वागत है तरही मुशायरे में भाग लेने के लिए सुबीर जी के ब्लॉग सुबीर संवाद सेवा पर
जहाँ गजल की क्लास चलती है आप वहां जाइए आपको अच्छा लगेगा

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Renu goel said...

ख़त पढ़ते ही रो देंगे वो ,ऐसा तो गुमां ना था ,
तौबा कितना दम होता है , कागज़ की कटार में !
बहुत खूब कहा ..